भारत का भूगोल -- ज्वार - भाटा
2. सूर्य तथा चन्द्रमा की आकर्षण शक्तियों के कारण सागरीय जल के ऊपर उठने तथा नीचें गिरने को ज्वार तथा भाटा कहते हैं ।
3. ज्वार - भाटा के कारण उत्पन्न तरंगों को ज्वरीय तरंग कहते हैं।
4. सागरीय जल को ऊपर उठाकर तट की ओर बढने को ज्वार कहते हैं तथा उसी समय निर्मित उच्च जल तल को उच्च ज्वार कहते हैं ।
5. सागरीय जल को नीचें गिर कर सागर की ओर को भाटा तथा उससें निर्मित निम्न जल तल को निम्न ज्वार कहते है ।
6. पृथ्वी के सागरीय जल में ज्वार तथा भाटा की उत्पत्ति चन्द्रमा तथा सूर्य के आकर्षण बलों के कारण होती हैं।
7. पृथ्वी का व्यास 12,800 किमी० है , परिणाम स्वरूप पृथ्वी की सतह केन्द्र की अपेक्षा 6,400 किमी० नजदीक हैं।
8. चन्द्रमा का केन्द्र पृथ्वी के केन्द्र से 3,84,00 किमी० दूर हैं तथा पृथ्वी की सतह चन्द्रमा की सतह से 3,77,00 किमी ० दूर है । चन्द्रमा के सामने स्थित भाग , जो पृथ्वी का चन्द्रमा के सामने सबसे नजदीक भाग होगा पर चन्द्रमा की आकर्षक शक्ति का प्रभाव सर्वाधिक होगा । पृथ्वी के पीछे के भाग पर आकर्षक बल न्यूनतम लगेगा ।
9. चन्द्रमा के सामने स्थित पृथ्वी का जल ऊपर खिंंच जाता हैं जिसके कारण उच्च ज्वार. का अनुभव किया जाता हैं । इस स्थान के ठीक पीछे निम्न ज्वार का अनुभव किया जाता हैं।
क्योंकि चन्द्रमा केन्द्रों के उन्मुख गुरूत्वाकर्षण बल की प्रतिक्रिया के स्वरूप उत्पन्न केंद्र प्रसारित बल के कारण जल बाक्हर की ओर उभर जाता हैं ।
10. चौबीस घंटे मे प्रत्येक स्थान पर 2 बार उच्च ज्वार तथा 2 बार भाटा आता हैं ।
11. जब सूर्य तथा चन्द्रमा दोनो एक सीध मे होते है तो दोनों की आकर्षण शक्ति साथ मिलकर कार्य करते हैं तो उच्च ज्वार का अनुभव किया जाता हैं। यह स्थिति पूर्णमासी तथा अमावस्या को होतीं है ।
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